...

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" नए शहर में खो गईं "

आई मित्र के घर मिलने की आस में
सोचा घूम आउ नवीनता की तलाश में
पहुंची उद्यान एक मासूम के पास में
बोला क्या पहुंचा दोगी माँ के पास में
सोचा मैंने, किन्तु मानवता की प्यास में
निकल पड़ी बच्चे को पहुंचाने उसके निवास मैं
पूछा बच्चे से उसका पता बोला वो विषाद में
लोग उसे चुरा लाये है सूँघा कुछ साँस में
घबराई मैं पर छोड़ ना पायी उसका हाथ मैं
सुझा कुछ नहीं और नया शहर हुए उदास मैं
दया, क्रोध, डर जैसे अनुभव हुए सब साथ में
भागते लोग, दौड़ती मेट्रो चमक रहा शहर प्रकाश में
दूसरी ओर दोखा, लाचारी कितनी थी निराश मैं
जाने-अनजाने का अंतर आज देख रही थी साफ़ मैं
भटकते हुए दिन निकला रात कटी रैनबसेरा रहिवास में
तब जाना चैन से रहना, खाना, सोना क्या है अपने आवास में
दूसरी सुबह घर अपने लौट आयी उस बच्चे को ले साथ मैं







© Gayatri Dwivedi