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चंद्रमुखी
इक राग पर रागिन दीवानी हुई,
तेरी मेरी ये प्रीति जुबानी हुई।
जमाने ने ढाहे कितने सितम-दर-सितम,
जब से बैरन हमारी जवानी हुई।
चाय पर चर्चा हमसे वे करते रहे,
प्याली की भी अपनी एक कहानी हुई।
मधुशाला की पड़ गई छाप जब से,
मद भरी फिर तो वह एक पैमानी हुई।
नजरों को पिलाने की आदत है,
अधरों की सारी रश्में बेमानी हुई।
एक बूंद भी पीला देना होठों से,
मानूं शाकी तेरी मेहरबानी हुई।
चले आते है हर रोज मयखाने मे,
मुड़कर वे कभी लड़खड़ाये नहीं।
पारो की माला फेरते सदा झूम के,
सुख काठी चंद्रमुखी की जवानी हुई।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey
तेरी मेरी ये प्रीति जुबानी हुई।
जमाने ने ढाहे कितने सितम-दर-सितम,
जब से बैरन हमारी जवानी हुई।
चाय पर चर्चा हमसे वे करते रहे,
प्याली की भी अपनी एक कहानी हुई।
मधुशाला की पड़ गई छाप जब से,
मद भरी फिर तो वह एक पैमानी हुई।
नजरों को पिलाने की आदत है,
अधरों की सारी रश्में बेमानी हुई।
एक बूंद भी पीला देना होठों से,
मानूं शाकी तेरी मेहरबानी हुई।
चले आते है हर रोज मयखाने मे,
मुड़कर वे कभी लड़खड़ाये नहीं।
पारो की माला फेरते सदा झूम के,
सुख काठी चंद्रमुखी की जवानी हुई।
© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।
© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey
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