...

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मुसाफिर की तलाश
सफर की बात हुईं तो देखू में खुद के अंदर
तलाश उस वक्त की, जो खो गया कही मेरे अंदर !

कोनसा रास्ता कोन बताए ,
काफिला रुके तो कोई बात समझाए !

अजीब से कसती में सवार, चल पड़ा में बन सिकंदर !
घर छोड़ा, छोड़ा शहर, बन जहाजी भटकता में ये समुंदर !
तलाश उस सुकुन की जो खो गया कही मेरे अंदर !

इतंजार उस मंजिल का,
अधूरे वादे, अधूरे खाव्बो का !

खुशियों का मलाल अब क्या करे, आस लिए बन गया में बन्दर !
हर नुक्कड़ हर चौराहे पे, नचा रहा कोई जादूगर !

सफर की बात हुईं तो देखू में खुद के अंदर
तलाश उस वक्त की, जो खो गया कही मेरे अंदर!


आगम






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