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इंसानी_फितरत_का_लहज़ा_रखता_हूं
इंसान हूं इंसानी फितरत का चेहरा रखता हूं
मैं ना जाने कितन चेहरे का अंधेरा रखता हूं

बदलते हुए मिज़ाजों का इक चर्चित ज़िक्र है
यूं ही नहीं इंसानी फितरत का लहज़ा रखता हूं

चेहरे पे छुपें हुए उन हाओ-भाव को लिखें है
इंसान हूं इंसानी रिश्तों का इक क़र्ज़ा रखता हूं

मेरे लबों पे अक्सर मेरे किरदारों की वफ़ा होती है
अब मैं भी झूठी तसल्लियों का किस्सा रखता हूं

बदलते हुए चेहरों का इक इक हिसाब किताब है
इंसानी उल्फ़तों से मैं थोड़ा तौबा-तौबा रखता हूं

चेहरे की कहानी को निशानियों के साथ समेटे है
आज फिर इंसानी फितरत का इक पर्दा रखता हूं

अपने तमाम अनुभवों को यादों के पन्नों पे रखें है
इंसान हूं इंसानी ज़िद्दों का इक शीशा रखता हूं

कुछ इस तरह चेहरे के मोहरों को पढ़ने लगें है
मैं भी मुस्कुराती हुई फितरतों का सौदा रखता हूं

ना जाने कितने तमाशे बजारो में बिकने लगें है
हजारों में तो बदलते चेहरों का इशारा रखता हूं

बातों की रंगत में मतलबों का ज़िक्र समेटे हुए है
इंसान हूं इंसानी फितरतों का शिकवा रखता हूं

© Ritu Yadav
@My_Word_My_Quotes