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दर्पण कथा
दर्पण का एक किस्सा दोहराना है
लगता है जैसे कोई रिश्ता पुराना है
वो दिखता तो अकेला है
पर साथ हमेशा रहता है
ख़ुशी मेरी होती है तो वो मुस्कुराता है
हर गिरते आंसू में साथ मेरा निभाता है
गुस्सा मेरा देख कर मन उसका भी दुख जाता है
मेरे आँखों का खलीपन सिर्फ उसे नज़र आता है
भूलना चाहु तो मेरी अधूरी कहानियाँ छुपाता है, और
याद करूं तो मेरे सपनों का रूप दिखाता है कहने को वो बेजान कहलाता है, और
जानू तो सच्चा दोस्त बन जाता हूँ
ना शिकायत ना कोई ख्वाहिश करता है
तन्हा होने पर भी साथ होने का एहसास दिलाता है
उसके टूट जाने पर समाज उसे अशुभ बुलाता है
फ़िर तकलीफ़ झेल कर नये रूप में सामने आता है
एक बार उसे ये बताना है
मेरी जिंदगी का वो कीमती खज़ाना है
दर्पण का एक किस्सा दोहराना है
हां हमसे कोई रिश्ता पुराना है |



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