निर्जन पथ
निर्जन पथ की भरी दुपहरी,
तपती जाती देह श्यामली,
मरू की धूमिल रेत सी दिखती,
उठती जाती धूल श्यामली,
प्यासी धरती सी अविरल जलती,
बूंद-बूंद हुई वाष्प श्यामली,
तरु भी छिन्न - विछिन्न हुए सब,
कहां घनेरी छांव...
तपती जाती देह श्यामली,
मरू की धूमिल रेत सी दिखती,
उठती जाती धूल श्यामली,
प्यासी धरती सी अविरल जलती,
बूंद-बूंद हुई वाष्प श्यामली,
तरु भी छिन्न - विछिन्न हुए सब,
कहां घनेरी छांव...