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क्या सिर्फ हमे ही सबकुछ छोड़ना होता हैं?
क्या सब कुछ छोड़ना सिर्फ औरत की किस्मत में होता है?
पिता को नहीं पसंद तो वो मनपसंद इंसान को छोड़ देती है।
पति को नहीं पसंद तो वो अपनी नौकरी छोड़ देती है।
ससुराल वालो को नहीं पसंद तो अपनी मर्जी के कपड़े पहनना छोड़ देती है।
अपने हक की बात कर दी, तो हमारी पढ़ाई लिखाई पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं।
कहते है औरत का दिमाग खुटनो में होता पर उसकी एक अदा पर अपना आपा खो देते हैं।
सबके लिए छूट्टी होती पर औरत के लिए हर दिन एक नया इम्तेहान होता है।
हमें हमारी अच्छाई से नहीं इस बात से जज किया जाता है कि हम खाना कितना अच्छा बनाते हैं।
हमें नहीं मिली पूरी आजादी, हमे सिर्फ सहनशील होना सिखाया जाता है।
हमें भी खुली हवा पसंद होती है।
हमें बाहर जाकर काम करने की अनुमति लेनी होती है और आपको बाहर जाने के लिए पूछना भी नहीं पड़ता है ।
हमें जाने से लेकर आने तक का समय भी बताना होता है।
हम ज्यादा कुछ नहीं चाहते बस अपने हिसाब से जिंदगी जीना चाहते है।
आजादी खुशी और सम्मान चाहते हैं ।
अगर इतना भी ना दे पाए तो क्यों हम आपकी इज्जत करें फिर भी तहे दिल से सारे बंधन निभाते हैं।
क्यू रिश्तों को बचाने के लिए हमें आगे बढ़ना पड़ेगा।
हर बार हम समझौता क्यों करें।
आप क्यों नहीं?
आप क्यों नहीं समझते हैं?
हमें भी समझने वाले लोग चाहिए होते हैं।
हमें भी दुख दर्द तकलीफ होती है ।



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