...

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दिल के अल्फाज
आज फिर
फ़िज़ां में वही ख़ामोशी है
हवा में वही सन्नाटा है
पगडंडियाँ वैसी ही सुनसान हैं
आहटे वैसी ही निःशब्द है
जैसे उस दिन थी...

जब आकाश का अकेला तारा टूटा था
जीवन का एकाकी सम्बन्ध छूटा था
जब सज गई थी सपनों की चिताएँ
जब मिट गई थी सारी आशाएँ

आज फिर
फ़िज़ां में वही ख़ामोशी है...
जैसे तब थी..
जब साए ने साथ चलना छोड़ा था
यादों ने करवट बदलना छोड़ा था
हमराह तो छोड़ गए थे पहले
रास्तों ने भी साथ चलना छोड़ा था
आज फिर
फ़िज़ां में वही ख़ामोशी है..

पर फिर भी इस सन्नाटे में
बाक़ी है कुछ अघट्य नवीनता
टिमटिमाती है दूर कहीं/उम्मीद की धुंधली लौ..
काश!! कि ऐसा हो..
अचानक ही कही से "तुम"
'झपाक'!! से आ जाओ..
भेद दो मन की नीरवता को
ख़त्म कर दो अंतः सन्नाटे को
और..और भर दो जीवन संगीत..
मेरे इस सुनसान जीवन में..

@rahul chaurasiya