...

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लगती हो
तुम जो हंसती हो तो फूलों की अदा लगती हो ।
चलती हो तो एक बादें सबा लगती हो।
दोनों हाथों में छुपा लेती हो चेहरा अपना ,
मशरिकी हूर हो दुल्हन की हया लगती हो।
कुछ ना कहना मेरे कंधे पर झुका कर सर को
कितनी मासूम हो तस्वीर वफा लगती हो।
बात करती हो तो सागर से छलक जाते हैं ,
सागर की लहर हो कोयल की सदा लगती हो ।
किस तरफ जाओगी जु़ल्फो की काली घटा लेकर ,
आज मचली हुई सावन की घटा लगती हो।
मैने तुमसे ही बात करके ये जाना है ,
तुम ज़माने में ज़माने से जुदा लगती हो।