...

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अन्नदाता पौरुष
बंजर जमीन को सींच,
लाए थे वो अन्न बीज
फिर न कभी पत्थर पे
कुदाल चला,लहलहा
उठी गेहूं की फसल
मिटने लगी भूख,होने
लगा तब गुज़र बसर,
आसमान थी नीली
खेतों को जिसने कर
दिया था हराभरा
आई हरित क्रांति जब
देश...