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दिन ७ अक्टूबर का आया
दिन ७ अक्टूबर का आया,
जिसने आंखों में आसूंओं का सागर छलकाया,
बिना मिले तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा मेरे सामने आया‌।

मन तो था कि लिखूँ एक प्यारा सा बधाई गीत,
पर 'कल्याणी' ने ये कहकर हाथ छुड़ाया,
कैसे लिखूँ बधाई गीत उसके लिए,
जिसने असमय ही हमसे हाथ छुड़ाया।

इसमें तुम्हारा नहीं कोई अपराध,
शायद तुम्हारी मधुर आवाज पर,
मोहित हुआ मेरा नाथ,
जो इतनी जल्दी उसने लगाई तुम्हें आवाज।

तुम्हारा जन्मदिन है आज,
आंसू बहाने का मन नहीं है आज,
पर सच कहती हूँ विरल भाई,
तुमने जी भर के रूलाया आज।

दिन ७ अक्टूबर का आया,
जिसने आंखों में आसूंओं का सागर छलकाया,
बिना मिले तुम्हारा मुस्कुराता चेहरा मेरे सामने आया‌।
© kalyani