...

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शिव
दिल में बसा रूह के करीब लगता है,
तेरा दिया मुझे मेरा नसीब लगता है।

भूत-पिशाच, गंधर्व सबसे यारी तेरी,
प्यारा तूझे हर निर्धन गरीब लगता है।

आया माँ सती को सादापन रास तेरा,
पिता को पर्वतवासी बेतरतीब लगता है।

शूलपाणी, जटाओं में धारण की है गंगा
कंठ बसा वासुकी खुशनसीब लगता है।

हर लिया घट-घट में था जो विष भरा,
शंकर तू हर मर्जं का तबीब लगता है।
© zia