...

11 views

कुछ अजीब
तुम ख़ता करके भी
खामोश रहो
हम बेगुनाही की भी
माँग ले माफ़ी
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह जिद तुम्हारी ....

तुम शर्तों के घेरे में
कैद कर दो हमे
हम बेशर्त मगर
मुहब्बत करे तुमसे
कुछ अज़ीब नहीं लगती
तुम्हें यह जरूरत तुम्हारी ...

तुम नज़रअंदाज़ कर दो
मेरी हर ख़्वाहिश
हम पूरी करते रहे मगर
हर जिद भी तुम्हारी
कुछ अज़ीब नहीं लगती
तुम्हें यह नीयत तुम्हारी ...

तुम कोशिश भी न करो
हमे मनानेे की
हम रूठ कर भी मगर
मनाते रहे तुम्हें ही
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह बात तुम्हारी ....

तुम बढते रहो
नये रास्तों पे
हम ठहरे रहे
मोड़ पर उसी
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह चाल तुम्हारी...

तुम नित बदलो
रंग चेहरा अपना
हम चाहते रहे तुम्हें
एक जैसा ही
कुछ अजीब नहीं लगती
तुम्हें यह उम्मीद तुम्हारी ....

तुम न पढ़ो न समझो
सवाल मेरे
हम तुम्हारी ख़ामोशी में
ढूँढते रहे जवाब मेरे
कुछ अज़ीब
नहीं लगती तुम्हें यह आदत तुम्हारी ??