...

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कि किसी रोज़ तो तुमसे मिलना होगा...
कोई दिन तो ऐसा मधुर होगा,
जब मध्यरात्रि देखा वो स्वप्न पूर्ण होगा।
किसी दिन तो वो शुभ भोर का आनंद होगा,
बस एक ही विचार मस्तिष्क में होगा,
कि किसी रोज़ तो तुमसे मिलना होगा।

आज भले रूठे हो, उखड़े हो मेरे वजूद से,
कभी तो यह बेरुखी का अंतिम पड़ाव होगा।

उड़ती हुई ये धूल सब कुछ धुंधला कर जाए,
कभी तो साफ़ ये आसमान होगा।
बस बहुत हुआ ये समय का खेल,
कभी तो दांव हमारे हाथ होगा।

विरह की आग में जल लिया बहुत मैंने,
हे प्रिय! अब कब इन नयन का संगम होगा?
© Pallu