आत्मा का श्रृंगार
बंजर धरती भी हो जाती खलिहान
जब कोई करले आत्मा का श्रृंगार
बाहरी श्रृंगार तो है मात्र एक आडंबर
खुश होते इससे ना नाथ, ना पैगम्बर
चीख-पुकार जब दे कोई सुनाई
ना देखो ये तो सिक्ख, वो ईसाई...
जब कोई करले आत्मा का श्रृंगार
बाहरी श्रृंगार तो है मात्र एक आडंबर
खुश होते इससे ना नाथ, ना पैगम्बर
चीख-पुकार जब दे कोई सुनाई
ना देखो ये तो सिक्ख, वो ईसाई...