...

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आत्मा का श्रृंगार
बंजर धरती भी हो जाती खलिहान
जब कोई करले आत्मा का श्रृंगार
बाहरी श्रृंगार तो है मात्र एक आडंबर
खुश होते इससे ना नाथ, ना पैगम्बर
चीख-पुकार जब दे कोई सुनाई
ना देखो ये तो सिक्ख, वो ईसाई
करो मदद बस एक ही सोच से
ये मेरी बहन, वो मेरा भाई
यही है परम आत्मा का श्रृंगार
करो सुंदर विचार,
छोटे- बड़ों का सम्मान,
ना गिर पाओ किसी की नज़रों में
बनाए रखो ऐसा स्वाभिमान
जलाए रखो कामयाबी का अंगार
पर न होने पाए दौलत का अभिमान
समाज और रुतबे पर ना मरो
उठो, आत्मा का श्रृंगार करो।