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अभिलाषा हर स्त्री की
राधा नहीं बनना मुझे न ही बनूं सीता,
बनना है मुझे शिव की वहीं शक्ति पुनीता।
सती बनके न सहूंगी मैं अपने शिव की अवज्ञा,
गौरा की तरह मानूंगी उनकी हर इक आज्ञा।।
हे ईश दो आशीष मुझे मिलें महाकाल,
जो वैरियों से रक्षा करें बनें मेरी ढ़ाल।।
चाहे कभी भी होऊं मैं उनके विरोध में,
पर वो कभी कहें न कटु शब्द क्रोध में।
सीधे से हों भोले से हों और हों बड़े प्यारे,
शिव और उमा से हों सम्बंध हमारे।
जन-जन के अपवाद दूर करने के लिए,
जग से किसी कलंक को मिटाने के लिए।
सहनी न पड़े हमें कभी विरह वेदना,
जीवन में अपने आये कभी कोई द्वेष ना।।
to be continued....
-©आँचल तिवारी,
© © Anchal Tiwari
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