आसां नहीं घर का मुखिया बन जाना
तारीफों के पुल मिले न मिले,
शिकायतों का रहता आना जाना,
कहने को तो अधिकार मिला पर,
आसां नहीं घर का मुखिया बन जाना।
जिम्मेदारियों का बोझ जो उठाया,
रखने का फिर उसे दस्तूर कहाँ,
बस परिवार ही याद रह पाता है,
खो जाता है जैसा सारा जहाँ।...