...

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लिखित पीड़ाएं
मछलियों का अश्रु
जल में बहाना रह गया,
और जाने कैसे खंडहर ने अपने शरीर पर
लिख दी महलों की कहानी,

कभी देखा है क्या
मन की सारी फुसफुसाहटों को
सिगरेट के छल्ले के बीच से गुजरते हुए,

पिछली रात के दर्द
नींद और आंखों के बीच का संघर्ष
किसी रात को ख़्वाब नहीं सीना चाहिए,

उस आधी रात विवशता के किवाड़
देह की तितलियों से अलग
स्मृतियों की चाबी से खुलते है

कोई चाय ढूंढता है
कोई धुएं के बीच ख़ुद को फूंकता है

मैंने पंखा ढूंढा..चल रहा था
रस्सी की खोज में डायरी मिली,
जिससे खून निकल रहा था,

प्रेम की मार का अर्थ गहरा है
बसंत के शहर में
जैसे पतझड़ का मोहल्ला,

जहां से गले मिलकर प्रेम ने
बिदा ली थी,
खिड़की पर आत्मा के आत्महत्या का आरोप,
और विवशता के किवाड़ पर
जंग लगी थी....

बस उसी दिन मैंने जाना
लिखना शौक नहीं...
मज़बूरी है जाँना.

सारे मलालों को हथेली पर पीसते हुए
उदासी पर कविता न लिखी तो
पीड़ाएं बुरा मान जाती है... यार !!
© Mishty_miss_tea