...

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मेरे कृष्ण-कन्हाई
मै रुप निरेखू जब-जब तोरी
मन मोरा हरसाए
शेष रही ना मन की इच्छा
जबसे प्रीत लगाए

श्यामल-श्यामल सुरत तोरी
देखूँ सबै सुख पाऊं
तू मोहन मेरो मनमोहन
सोच-सोच मुस्काऊँ

तुम बिन कोई मीत ना मेरो
तोसे है बस नाता
तेरो स्नेह-सुधा में तरकर
मन मोरा सरसाता

हे माधव ! हे कृष्ण कन्हाई
ऐसो ही प्रीत रहे तुमसे
मन अकुलाये जब-जब मेरो
स्नेह ज्ञान मै पाऊं तुमसे।
© Kajal Goswami