...

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सुहानी पूर्णमासी
लो फिर आ गई पूर्णिमा की चाँदनी रात
मदहोश सी कलियां भरे जहां अंगड़ाई
न जाने क्या बतलाती है चाँद की  चाँदनी
कभी चमकती तो कमी दमकती है इसकी प्याली
उसकी आभा में  सिमटी हो जैसे रूप की रानी
बिम्बा में उसकी ओझल होते शमा के नीले बेर
जिनकी मिठास की महक से उठता मेरा सेर
रात में टीम टीम करते सितारों से जुगनू
डाल–डाल क्रीड़ा करे तरंगों सी ढाल लिए
क्यों मन इठलाया करे मधुर चांदनी गीतों पर
गुंजन जिसकी भटके हर दिल के सुरों पर
कहने को तो फिर आएगी पुरनमासी की सुहानी रात
फिर से आएगी हर पंखुड़ियों पर चांंद्रिका सी दमक
दिन ढले फिर शाम ढले और आएगी पूनम की वो रात
फैलेगी महबूब सी अनुकंपा चारों ओर सितारों के साथ
बजेगी अंबर के हर कोने पर मोहिनी की शहनाई
हर युगल जोड़ी समेटे रैन से स्नेह की आस
फिर एक दिन लौट के आएगी पूर्णिमा की वो मीठी रात।


© Inky Logophile
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