...

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जिदंगी की दौड़
ये जिंदगी धीरे-धीरे आगे बढ़ी जा रही है,
इतिहास के पन्नों को भरी जा रही है।
कुछ बीत गया कुछ बाकी है अभी,
इस जिंदगी की दौड़ में अपनो को भूल गए सभी।
कुछ फूल खिले,कुछ मुरझा गए,
दोस्त,यार,भाई सब मोबाइल में समा गए।
अब ना दिखते हैं कहीं बच्चों के खेल,
ना बनती है वो लंबी वाली रेल।
जिनको जानते न थे वो अपने हो गए,
परी की दुनिया वाले सपने खो गए।
अभी भी कुछ जिदंगी बची है चलो जी लेते हैं उसी को,
क्या पता वह भी चली जाए आज को या कल को।
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