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चन्दन
हिम वन में एक चन्दन है,
नियती का अदभुत क्रन्‍दन है,
खुशबू देता, पावन करता,
आनन्दित होता हर जन मन है ।
अनेकों सर्प इस पर लिपटे हैं,
क्यों डसते इसको हर पल हैं?
सर्प चन्दन की विपरीत प्रकृति
नियती की अदभुत अभिव्यक्ति,
समय का ऐसा खेल निराला,
विष अमृत नें क्या रच डाला?
साथ साथ रहना पड़ता है,
ज़हर सदा, पीना पड़ता है,
खामोश खड़ा है, चन्दन वन में,
डसते रहते, विषधर तन में,
विषधर इसकी , जड़े काटते,
नित प्रतिदिन हैं, डंस मारते,
फिर भी खड़ा है, अविचल चंदन,
करता रहता , प्रभु का वन्दन,
विधि के ऐसे विधान हैं,
सभी प्रकृति के गुलाम हैं,
हैवान करते व्यवधान हैं,
इन्सान खोजते, समाधान हैं,
दोनों की अपनी प्रकृति है,
सबकी अपनी एक ,संस्कृति है ।
(मुकुल कृष्ण कुलश्रेष्ठ) फरीदाबा
शीर्षक चन्दन