ग़ज़ल...
आज फिर हम तेरे हुस्न पर ग़ज़ल कहेंगे
संगे-मरमर से बदन को ताजमहल कहेंगे
है झील की गहराई तेरी इन दो आँखों में
इन आँखों के मोती को नीलकँवल कहेंगे
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संगे-मरमर से बदन को ताजमहल कहेंगे
है झील की गहराई तेरी इन दो आँखों में
इन आँखों के मोती को नीलकँवल कहेंगे
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