तलाश है 👀
कल तलक खामोश थे लब मेरे,
आज जाने कैसे आज़ाद हैं...!
हैरानी नहीं इस बात की मुझे,
कहते अब भी नहीं साफ़ सा़फ है,
आफताब समेटे है खुद में ही,
नूर भी अब तो बेहिसाब है,
बोली के तीर, तो क्या ही कहने,
सब कहते ही हैं, क्या कमाल हैं...
गलत ना समझना मुझे तुम,
ना यूं कहना भी तुम की,
करती श्वेता तारीफ अपनी बेहिसाब है,
टूटा तारा हूं बस एक कोई,
जो दर्द लिखती सबके लाख है,
ना दौलत की चाह है मुझे,
ना हार, श्रृंगार का चाव है,...
आज जाने कैसे आज़ाद हैं...!
हैरानी नहीं इस बात की मुझे,
कहते अब भी नहीं साफ़ सा़फ है,
आफताब समेटे है खुद में ही,
नूर भी अब तो बेहिसाब है,
बोली के तीर, तो क्या ही कहने,
सब कहते ही हैं, क्या कमाल हैं...
गलत ना समझना मुझे तुम,
ना यूं कहना भी तुम की,
करती श्वेता तारीफ अपनी बेहिसाब है,
टूटा तारा हूं बस एक कोई,
जो दर्द लिखती सबके लाख है,
ना दौलत की चाह है मुझे,
ना हार, श्रृंगार का चाव है,...