...

11 views

" हमें क्या हासिल "
" हमें क्या हासिल..? "

मैं और मेरी दुनियाँ और उसमें बसी
बेइंतहा ख़ामोशी ओढ़े हुई तन्हाई..!
मूक-बधिर सी जिन्दगी में हमें क्या हासिल..?

कहने को परिवार बसाएँ हैं मगर हमें
क्या हासिल..?
जहाँ किसी को अपनापन देने के
बावजूद भी कोई अपना ही नहीं है..!

भोर से रात तक खुद को जिम्मेदारियों
और फ़र्ज़ की चक्की में पीसने के बाद
भी आप उनके लिए उपयोगी संसाधन
मात्र रह जाते हैं..!

नौकरानी तुल्य जो सबकी जरूरत पूरी कर अपना कर्तव्य निभाने से ज्यादा कुछ नहीं होती है वो भी मुफ़्त में, जिसे कोई त्यागना नहीं चाहता है परंतु कोई भी व्यक्ति उसे प्यार से अपनापन एवं सम्मान नहीं देता..!
ऐसे रिश्तों को निभाने से भला हमें क्या हासिल..?

जिन्हें हम ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाते और ताउम्र सहेजने में बिताते हैं एवं उन्हें तन्हाई में या मझदार में कभी भी छोड़ते नहीं वो बड़े होने पर आपको यह एहसास करवाने से कब चूकते कि उन्हें अब हमारी जरूरत नहीं है..?

वो अपने फ़ैसले खुद ले सकते हैं और हमारी अवहेलना की जाती है..!
जिनके बलबूते पर आज वो एक सम्मानजनक ओहदों पर पहुंचते हैं उन्हें ही बोझिल होने के एहसासों से देखा एवं जताया जाता है..!

मैं अपने अनुभव से कहती हूँ कि वो खुद को धन्य समझें जिनकी कोख सूनी रह गई या जो संतान के सुख से वंचित रह गए हैं..!

आपकी रुस्वाई और इन सन्तान के सितम जनने वाली कोख के लिए अभिशाप साबित होता है..!

ईश्वर ने कुछ समय मुझे भी औलाद से वंचित रखा था मगर मैं ने ईश्वर को बहुत कोसा की मेरे आँगन में किलकारी क्यूँ नहीं गूंजती है..?

बहुत मन्नत मांगी गई कि मेरी आस पूरी हो..!
आज बहुत पछतावे के साथ जीना...