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मेरे कदम
एक सकून ये भी है
तुम सही हो।
जो है सच है,
और तुम सच हो।
लाख जमीं थरथराई थी,
धड़कन की गति धिमयी थी,
हर अंग में कंपन था,
मौन मन था,
आँखे धुंधलाई थी
और ऐसा भी वक़्त रहा
जब वक़्त ने नाराज़गी दिखलाई थी।
पर तुम थे मेरे साथ
अड़िग अटल रहे
साथ मेरे चलते रहे
जकड़ ज़मीन को
बेसुध खड़े रहे,
मेरे क़दम
मेरे साथ
इसी तरह बढ़ते रहे।
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मनीषा राजलवाल
© maniemo