...

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पुरुष .... ✍️✍️✍️
जीव बिना सृष्टि का कोई,
फल कैसे उपजाओगी,
पुरुष नहीं होंगे धरती पर,
तो क्या तुम रह पाओगी?

रावण ही हो पुरुष सभी,
संभव ऐसा भी तो नहीं है,
माना, राधा, सीता है कई,
पर कुछ सूर्पनखा सी भी है

अच्छे बुरे सभी होते हैं,
वो कोई नर हो या फिर नारी,
सारे पुरुषों पर इल्जाम लगा,
वो बन जाती है क्यूं बेचारी

नारी के दुख का, दर्दों का,
गुणगान तो गाया जाता है
पर पुरुषों की पीड़ा को,
क्यू हर बार छुपाया जाता है

मुझको बस इतना कहना है
कि, हर कोई इंसान यहां है।
एक जाति पर इल्जाम लगाना,
यह इंसाफ कहां का है?

अपराधी तो बस अपराधी होता है,
वो नारी या पुरुष नहीं होता है।
फिर क्यों एक अपराधी के कारण,
हर पुरुष कटघरे में होता है?

© Vineet