ये इश्क़ शायद अंजाम पर है...
ये बदलते तेवर,
लहज़ा-ओ-अंदाज़ ...
ये तू–तू , ये मैं –मैं ,
ये राह जिस्मानी
ना बातें रूहानी ...
ये इश्क़ अपना शायद
अब अंजाम पर लगता है
थोड़ी मायूस हूं मैं
थोड़ी हैरान भी...
ऐसे बदलते हैं जब अपने
सफ़र तन्हा मेरा,
मुझे मंजर इश्क़ का ख़ाक लगता है
जरूरतों के हिसाब से बदल जाते हैं लहज़े
तू इंतजार मत...
लहज़ा-ओ-अंदाज़ ...
ये तू–तू , ये मैं –मैं ,
ये राह जिस्मानी
ना बातें रूहानी ...
ये इश्क़ अपना शायद
अब अंजाम पर लगता है
थोड़ी मायूस हूं मैं
थोड़ी हैरान भी...
ऐसे बदलते हैं जब अपने
सफ़र तन्हा मेरा,
मुझे मंजर इश्क़ का ख़ाक लगता है
जरूरतों के हिसाब से बदल जाते हैं लहज़े
तू इंतजार मत...