...

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माँ
प्यार से खाने की थाली मेरे लिये सजाती है,
हमेशा पहला निवाला खुद से पहले मुझे खिलाती है,
जब भी मैं बीमार होता हूँ तो पूरी रात जागती है तू,
बचपन तो बचपन, आज तक फिक़्र में मेरे पीछे भागती है तू,
इसे तेरा एहसान कहूँ या अपना सौभाग्य समझ नहीं आता,
पर तेरे सिवाय मुझे कोई समझ नहीं पाता!

आज भी याद है तेरी मार और सर पर फेरा गया तेरा हाथ माँ,
जब सब छोड़ चुके थे तब था तेरा साथ माँ,
तेरे लिये जान दे देना मेरे लिये कोई बड़ी बात नहीं है,
तसल्ली होगी कि जिसने सांसें दी उसी के लिये सांसें थमी हैं!

मैं नहीं जानता मैं अच्छा बेटा हूँ या नहीं,
एक बात है दिल में, कहूँ या नहीं?
चलो आज दिल खोल ही देता हूँ,
जो दिल में है वो बोल ही देता हूँ!

एक बात है जिससे मैं अक्सर डरता हूँ,
तू साथ नहीं होगी यही सोचकर हर पल मरता हूँ,
और यूं तो कुछ नहीं मांगता भगवान से,
लेकिन तुझसे एक दिन कम जीने की दुआ करता हूँ!

तू क्या है माँ ये शब्दों में कैसे बताऊँ,
तेरे सिवाय इस दुनिया में और किसे सताऊँ,
चाहिये मुझे पूरी दुनिया अपनी मुट्ठी में,
पर तेरे बिना एक पल भी इस दुनिया में कैसे बिताऊँ!

माना कि मैं एक अच्छा बेटा नहीं हूँ,
खैर खबर तेरी कभी लेता नहीं हूँ,
मेरे मन के हर विचार में तेरा ही वास है माँ,
तो क्या हुआ अगर मैं कभी कुछ कहता नहीं हूँ!

मैं कहता इसलिये नहीं क्योंकि तू खमोखा फिक़्र करती है,
पड़ोसियों से बस मेरी ही कामयाबी का ज़िक्र करती है,
मुझे पता है तू बहुत अच्छी है पर थोड़ी फिक़्र अपनी भी तो किया कर,
हम सब के लिये कब तक जियेगी, कभी अपने लिये भी तो जिया कर,
सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक सब कुछ करती है,
कभी एक गिलास दूध खुद भी तो पिया कर!

तेरे लिये मेरा हर जन्म कुरबान है,
मुझमें जो कुछ भी है,वो सब तेरी ही पहचान है,
तू है तो ये जिन्दगी जी रही है माँ,
तेरे बिना तो तेरा ये नालायक बेटा सिर्फ एक शमशान है!

तेरी खुशियां खरीदने के लिये भरे बाज़ार बिक सकता हूँ,
तेरे सुकून के लिये मरकर भी ज़िंदा दिख सकता हूँ,
और ये कविता क्या तुझ पर तो पूरा उपन्यास लिख सकता हूँ,
अपने रक्त से मेरे लिये किये गये तेरे हर त्याग का इतिहास लिख सकता हूँ!











© Shivaay