...

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सब कुछ बस इक धोखा है।
जब अंधेरा आता है
साया भी चला जाता है,
हवा के ज़ोर पे कागज़
भी बह जाता है,
लब तो मेरे खामोश हैं
पर आंखों का पानी
सब कह जाता है,
आंख ज़रा सा खुलती क्या
किरदार ही सब खो जाता है,
धुंधली सी तस्वीर कोई
रह रह के सामने आती है,
पर पाकर हल्की सी ही रोशनी
वह भी कहीं छीप जाती है,
कभी कहीं करीब से इक आवाज़
भी मुझ को आती है,
कोई अनजाना सा लहजा है
कुछ अपनापन भी होता है,
कभी खुशी सी लगती है
कभी बिन बात दिल ये रोता है,
कभी गुफ्तगू सी होती है
कभी बहस सी इक छिड़
जाती है,
दिल कहता ज़रा सा ठहर जा
" इक हाथ तुझ तक आएगा"
दिमाग कहता अगर ठहर गई
"तेरा क़दम यहीं जम जाएगा"

ये सारी आवाज़ें !
जो तुझ तक आती और जाती हैं
गायब कर सारे मंज़र को
एक अलग दुनिया में ले जाती हैं,
सब कुछ इक धोखा है
पर तू समझ नहीं पाती है,
ना कोई साथ ही देता है
ना बनता कोई सहारा है,
गर हिम्मत है जज़्बा है
यकीन है खुद पर तुझ को,
तो फिर ऐ मेरी जान!
क्या फूल और फिर क्या कांटा है
सुन तू सिर्फ अपने कदमों की आवाज़
सोच की हर तरफ सन्नाटा है,
बस तू है और सिर्फ तू है
ना कोई तेरा साया है,
तू है तेरे बढ़ते क़दम
फिर सारा जहान तुम्हारा है।

Fayza.




© fayza kamal