...

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विरक्त नायिकाएं
वो स्त्री आज सज रही थी
संवर रही थी, नायिकाओं
के रूप में, चेहरा हंसमुख
सौंदर्य से परिपूर्ण,नए नए
वस्त्रों में वो, दिख रही थी
नायिका, उन्होंने स्वयं को
केवल वस्त्रों से नहीं, केश
से नहीं,श्रृंगार से नहीं,वह
सजी थी उल्लास से,उसने
स्वयं के चेहरे को, मुस्कान
से सजाया था,प्यारी दिख
रही थी वो उसने स्वयं को
ऐसा बनाया था,बारी बारी
से सभी नायिकाएं मंच पे
नज़र आ रही थी, पलभर
में आके गुज़र जा रही थी
लोग उनके वस्त्रों को नहीं
उन्हे निहार रहे थे, उसको
याद कर वस्त्रों को बिसार
रहे थे, इस बात का वस्त्र
के वाले ने गौर किया,इस
तरीको को पहले से कुछ
और किया, परंतु अब वो
नायिकाएं वस्त्रों से सजती
तो हैं उन कपड़ों में जचती
तो हैं,पर नहीं करती है वो
मुस्कान का श्रृंगार,अब न
रहती है, उनके चेहरे पर
वो हल्की मुस्कान न ही वो
पहले सा हावभाव, अब
आती है वो मंच पर जब
तो रहती है वो चेहरे से
उदास,कोशिश करती है
उनके चेहरे से ज्यादा
अब लोग उनके वस्त्रों को
याद रखें, क्योंकि अब
केवल अब...