दो टूटे पत्ते
नदी के किनारे अपने ख्यालों में खोए थे
कुछ किस्सों को मन में पिरो रहे थे
नदी का पानी शीतल साफ और शांत था
पास ही के पेड़ से दो पत्ते टूट कर गिर गए
साथ में गिरे और नदी में बहते चले गए
एक पत्ता इठलाता हुआ दूसरे पत्ते को
बार बार छेड़ रहा था
दूसरा पत्ता भी...
कुछ किस्सों को मन में पिरो रहे थे
नदी का पानी शीतल साफ और शांत था
पास ही के पेड़ से दो पत्ते टूट कर गिर गए
साथ में गिरे और नदी में बहते चले गए
एक पत्ता इठलाता हुआ दूसरे पत्ते को
बार बार छेड़ रहा था
दूसरा पत्ता भी...