“Wo”
कैसा मन्ज़र था सामने मेरे
जब क़दम मैंने अपना रक्खा था
उसकी वो झील सी थीं जो आंखें
सारा दामन भिगोये बैठी थी
बेसबब ही बढ़ा मैं उसकी तरफ़
ख़ुद से जो दुश्मनी पे उतरी थी
कितनी बेदर्द आ रही थी नज़र
अपनी आंखों को साफ करती हुई
© Arshi zaib
जब क़दम मैंने अपना रक्खा था
उसकी वो झील सी थीं जो आंखें
सारा दामन भिगोये बैठी थी
बेसबब ही बढ़ा मैं उसकी तरफ़
ख़ुद से जो दुश्मनी पे उतरी थी
कितनी बेदर्द आ रही थी नज़र
अपनी आंखों को साफ करती हुई
© Arshi zaib
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