...

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इश्क़ से इबादत तक
इश्क़ जब यहां ख़ुदा बन जाये,
गुमां ज़िस्म का गुबार हो जाये।
रूह से रूह का जब हो मिलन,
देह से इतर इबादत बन जाये।।
दौलतें शोहरतें ख़ाक जहां की,
महबूब ख़ुदा जिसका हो जाये।
फिर आरज़ू ना किसी बात की,
मुकम्मल ख्वाहिशें सब हो जाये।।
ना भटक तलाश में ख़ुदा की ,
मिटा ख़ुदी कि ख़ुदा मिल जाये।।

"ऋचा"
© anubhootidilse