...

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मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?
आगे हुयी राह से मानक हो गया था
जीवन को लेकर बेपरवाह हो गया था

मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?

नींद से मेरा नाता टूट गया था
भूख के पन्नों से भी ये मन रूठ सा गया था

मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?

अकेलेपन से मानो प्यार हो गया था
एक सच्ची खुशी के लिए दिल लाचार हो गया था

मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?

अपनों के बीच में अन हो गई थी
बिना आंखों में आंसू लाना बड़ा आसान हो गया था

मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?

विश्वास तो धारणा,.. जैसे खोई थी नींद
तो खुली थी, मगर आत्मा कब सो गई थी

मैं अक्सर खुद से पूछता हूँ “मुझे क्या हो गया”?