...

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जख़्म-ए-पिन्हाँ
"बाद जाने के उनके दिल दुकाँ हो गया,
समझा तलबगार ,शो'ला फिशाँ हो गया।

थम गयी है नब्ज साँसो को उलझाए,
जब से बहर-ए-मुहब्बत कताँ हो गया।

अश़्क बहाने लगी है चश्म-ए-करम,
हमनवाँ क्यों पल में खिजाँ हो गया।

ग़ालिबान घुटन है जहर-ए-इश्क़ में,
जख़्म-ए-पिन्हाँ गहरा निशाँ हो गया।

हार गई अपनी चाहत के बदौलत,
कमबख़्त जफ़ा करके गुमाँ हो गया।

ऐ-ख़ुदा तेरी इबादत भी काम न आई,
जहालत में क़ैद लफ़्जों से बयाँ हो गया।

गोशा-ए-दिल का दर्द-ए-दास्तान बिका,
एक ख़्वाब पुराना सुलगता धुआँ हो गया।
© Saiyaahi🌞Rashmi✍


**शोला फिशाँ -आग बरसाने वाला।
**जख़्म-ए-पिन्हाँ।
**खिज़ा- पतझड़।
**कताँ -मलमल

©Saiyaahii🌞✒