माँ
वो सजल बरसाती , करुणा की साक्षात् मूर्ति उदास,निराशअपनों से ,वक्त के झंझावात चेहरे पर लिए, सफ़र के पैरों में कंटक लिए, न जाने किस आशा में गम का घूंट पिये, वो माँ जो आज भी,अनसुलझे प्रश्नों के जबाब में किसी के दर्द में ,किसी के मातम में तो किसी की खुशी में,किसी के कुम्हलाने चेहरे में नज़र है आ जाती अक्सर मुझे,जब मैं फंस जाता हूँ अपने ही बुने जाल में ,गुमराह होती सड़कों में घूम जाता है चेहरा मुझे,सपनों के सुरीले झरोखे में अपनी ही उधेड़बुन में लगी हुई , न किसी से कोई शिकवा न शिकायत न अफ़सोस न खेद, केवल अपनी ही दुनिया मैं सोचता हूँ विचार करता हूँ , सिरमौर बना के हृदय में रखता हूँ, कितने सपने थे? क्या क्या न देखा था?ऐसा तो सोचा न था! समय बदल जायेगा.
© Pramod Kumar
© Pramod Kumar