माँ
वो सजल बरसाती , करुणा की साक्षात् मूर्ति उदास,निराशअपनों से ,वक्त के झंझावात चेहरे पर लिए, सफ़र के पैरों में कंटक लिए, न जाने किस आशा में गम का घूंट पिये, वो माँ जो आज भी,अनसुलझे प्रश्नों के जबाब में किसी के दर्द में ,किसी के मातम में तो किसी की खुशी में,किसी के कुम्हलाने चेहरे में ...