शायरी#57
एक झलक काफी हैं
मुंतजिर आँखों के लिये
और भी ख़्वाहिशे बाकी हैं
मर मिटने के लिये
© Spiritajay
मुंतजिर आँखों के लिये
और भी ख़्वाहिशे बाकी हैं
मर मिटने के लिये
© Spiritajay
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