...

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चिन्तन
एक दिन मन ने सोचा
कुछ चिन्तन किया जाए
कैसे छुपाती है मां हर दर्द
आज पता लगाया जाए,
खूब बहलाया बातों से
खूब ही लाग लपेट करी
क्या मजाल है भाया रे
एक बात ना पता लगी ,
देखा कई बार उसे मैंने
पल्लू से आंसू पौंछते हुए
कामों में व्यस्त होने पर भी
होठों को बुदबुदाते हुए,
पूछ ही लिया उससे मैने
कैसे सबकुछ सह लेती हो
कैसी हो मां , पूछने पर..
बिल्कुल अच्छी हूं कह देती हो,
वो बोली मेरे अपने दुःख
होते ही कहां है....
तेरी खुशियों में ही बेटा
दुनिया मेरी जंवा है ,
सुनकर उसकी बात
अपलक निहारा उसे मैंने
थाह नहीं मां की कोई
ये ही सोच लिया मैंने।।