...

3 views

हम मिलते हैं।
जब भी हम मिलते हैं, मिलकर
बिछड़ से जातें है।
कभी गलतफहमियों के वज़ह से,
तो कभी अपनी इगों की वजह से ।
तकलीफें तो दोनों को होती हैं,
पर महसूस किसी को नहीं होती।
आंखें हर रात भींगती है,
पर दिखाई किसी को नहीं देती।
अंदर ही अंदर दिल तड़पता रहता है,
पर होंठों पर मुस्कुराहट हर वक्त रहती है।
नींद आंखों से ग़ायब रहती है,
फिर भी रातें कट जाती है।
ना कभी हम कह पाएं उनसे,
ना कभी वो बता पाए हमें।
युं दिल की बातें कभी जुबां पर आई ही ना,
फिर गलतफहमियों ने एक दूसरे को दूर कर दिया।
युं गलतफहमियों के दीवार को गिराना,
आसान भी ना था।
मिलना मुक्कमल भी ना हुआं,
और बिछड़ना बार बार हुआ।
उनसे बिछड़कर ऐसा लगा,
जैसे सांसें थम जाएगी।
पर फिर भी कुछ भी आसान ना रहा,
हम फिर मिलें और ऐसा लगा,
जैसे ये सारे पल एक पल में ही ठहर सा गया है।