ज़िंदगी ...चलने का नाम ✍️
#बिखर
निखर जाएगा समझौता कर ले,
बिखर जायेगा ना हठ कर बे;
शीशा कहा टिकता गिर कर रे,
ठोकरें खाते गुज़रा ज़माना
अब तो तू संभल जा रे ...
जलता - कुढ़ता खुद के अंदर
कब तक कोयला बना फिरेगा बे;
बीता वक्त वापिस कहा आता रे,
उम्र ढल चली शिकायतों में
अब तो जीना सीख जा रे...
खुद सा कोई ढूंढता है क्यों
सब एक जैसे कहां होते बे;
ज़िंदगी अलग ,आसमां अलग
तो सपने एक से क्यों होंगे रे ,
अपनी उड़ान का
ख़ुद ही गवाह बन जा रे...
🍂
© संवेदना
निखर जाएगा समझौता कर ले,
बिखर जायेगा ना हठ कर बे;
शीशा कहा टिकता गिर कर रे,
ठोकरें खाते गुज़रा ज़माना
अब तो तू संभल जा रे ...
जलता - कुढ़ता खुद के अंदर
कब तक कोयला बना फिरेगा बे;
बीता वक्त वापिस कहा आता रे,
उम्र ढल चली शिकायतों में
अब तो जीना सीख जा रे...
खुद सा कोई ढूंढता है क्यों
सब एक जैसे कहां होते बे;
ज़िंदगी अलग ,आसमां अलग
तो सपने एक से क्यों होंगे रे ,
अपनी उड़ान का
ख़ुद ही गवाह बन जा रे...
🍂
© संवेदना