...

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फिर से
चांद के मुस्कुराने का इंतजार कर रही हूं
मैं शम्मा को फिर से जलाने की कोशिश कर रही हूं।
रात शायद ज्यादा है मेरे हिस्से में,
पर मैं फिर से उस खुर्शीद की राह देख रही हूं।

लब्जो को लबों पे लाने की कोशिश कर रही हूं।
म जमाने में उठ खड़े होने की ताकत संजो रही हूं
हवा थोड़ी थम जरूर गई है।
पर मैं फिर से उसके शोर की आस कर रही हूं।

चाहत को अपने उमीद दे रही हूं
मेरे राहों में में नजर टीका रही हूं
मंजिल थोड़ी दूर जरूर हो गई है
पर मैं फिर से उसकी तरफ कदम बढ़ा रही हूं

ज़िन्दगी को अपने फुसला रही हूं।
मेरे कदमों को साथ देने की गुज़ारिश कर रही हूं
मन थोड़ा हार जरूर गया है
पर मैं फिर से उसे मुस्कुराने के लिए कह रही हूं।