...

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एक डोर थी कच्ची
एक डोर प्यार की,,
वो प्यार की डोर तुमने मेरे हाँथो मे रखी
जो डोर मैने थाम ली
डोर वो जिसमे मैने अपने एहसास की फूल पिरोये थे
तो तुमने भी उन पिरोए हुए फूलों सो बड़े प्यार से सजाया था
एक खूबसूरत हार बन गया हमारे ज़ज़्बातों का
हम दोनो ने ही उस डोर को सजाया था
पर ना जाने क्यूं डोर का दोनो सिरा आपस मे मिल नहीं पाया था
छोड़ दी वो डोर तुमने ही जिसका धागा तुमने खुद फूल पिरोया था
बिखर गया सब कुछ टूट कर एक पाल मे ही...
बस मेरा हिसा रह गया मेरे पास जिनमे बस रह गयी अब यादें ही..और कुछ अधूरे से ख़्वाब
सूख गए है अब वो सरे फूल जो तुमने चुन कर मुझे दिये थे
टूटने लगी है वो डोर भी शायद कच्ची थी
अब सब हाँथो से छूटने लगे है

maayaa_🖤