...

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तारीख़ें बाकी हैं...
पूरा साल बीतने के बाद भी कुछ तारीख़ें बाकी हैं,
दिल में यूँ मरम्मत के बाद भी कुछ दरारें बाकी हैं।

जाने कैसे पल-भर में गुज़र जाते हैं ये अच्छे पल,
बुरे पल गुज़रने के बाद भी कुछ भुलाने बाकी हैं।

लफ़्ज़ हो जाते ख़ामोश मगर बोलती हैं ये तारीख़ें,
दरम्याँ दूरियों के बाद भी कुछ अफ़साने बाकी हैं।

टूटने के बावजूद भी आदत है सब समेट लेने की,
ज़ख़्म सँवारने के बाद भी कुछ सिलवटें बाकी हैं।

हँसकर दर्द झेलने से कुछ होता ना हासिल 'धुन',
सबकुछ लुटाने के बाद भी कुछ चाहतें बाकी हैं।
© संगीता साईं 'धुन'


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