...

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Father Sahab
नन्हा-सा था मैं, जब पापा ने गोद में थामा था,
नई-सी इस दुनिया में, हमारे प्रेम का वो पहला धागा था।
लड़खड़ाती कदम को दिया सहारा जिसने,
हर नादानी को प्यार से संवारा जिसने।
डर या घबराहट में सामने सबसे पहला हाथ जो आता है,
बाप, Dad और पिता के नाम से वो कहलाता हैं।
फिर भी क्यों ज़िंदगी के बढ़ते गगन में,
मतभेद का साया आता है।
जिसने दुनियादारी से रुबरु करवाया,
उसको ही मन का घमंड नीचा दिखाता है।
आखिर क्या "मुझे नहीं पता,पापा" से "आपको कुछ नहीं पता, पापा" के बीच बदलाव लाता है,
कभी गैरों के सामने बाप का हाथ पकड़ने से,
आज बाप का हाथ छोड़, गैरों का साथ ज्यादा लुभाता है।
बाप की कीमत और बाप का प्यार तब समझ आता है,
जब प्रेम के धागे को तोड़ , बाप इस दुनिया से चला जाता हैं।

- RK


© Rohit_writes