...

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एक जिंदगी मिली थी,
एक जिंदगी मिली थी ज़ब तुम मिले थे
झड़ गए सारे पत्तों से उदास किसी शाख पर,
झांकती एक नई कोपल जैसे,
किसी मांगी हुई मन्नत के पूरे हुए धागो जैसे,
छत्त की मुंडेर पर बिखरी हुई ओस की बूंदो जैसे..
सब कुछ हरसिंगार के फूलो की तरह महकता सा महसूस होता था,
और एक दिन तुम कुछ यूँ चले गए
जैसे हाथो से रेत,
जाते जाते मुझे जगा गए ये कहकर "उठो कितना ख्वाब अभी तुम्हारी आँखे और देखेगी "!

© सुनीता जायसवाल