टूटा दिल बरसों पहले
दिल अफ़सुरदा-ए-अज्जियत में है,
ये क़ातिब ग़म की चौखट में है।
हसीं ख़ाब मयस्सर नही आँखों को,
तन-मन सब फ़ुरकत में हैं।
और ग़म हैं ज़माने के बहुत छोटे,
वो दर्द बड़े हैं जो मोहोब्बत में हैं।
विसाल-ए-यार की क्या ही करें तमन्ना,
रहने दो तन्हा जब बरसों से हिज़रत में हैं।
वो लोग दिल को जरा मजबूत करके चलना,
जो इन दिनों किसी की चाहत में हैं।
दर्द वाला शायर
© All Rights Reserved
ये क़ातिब ग़म की चौखट में है।
हसीं ख़ाब मयस्सर नही आँखों को,
तन-मन सब फ़ुरकत में हैं।
और ग़म हैं ज़माने के बहुत छोटे,
वो दर्द बड़े हैं जो मोहोब्बत में हैं।
विसाल-ए-यार की क्या ही करें तमन्ना,
रहने दो तन्हा जब बरसों से हिज़रत में हैं।
वो लोग दिल को जरा मजबूत करके चलना,
जो इन दिनों किसी की चाहत में हैं।
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