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#जंजीर#
#जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
किसी और के लिए
खुशी की राहों को छोड़कर
मुस्कुरा रहें है ऐसे हम
बिजली चमक रही हो जैसे बादलों के साए ओढ़कर
दर्द मिटता ही नहीं कितना भी मिटा ले
वो गया है मेरे सीने में ऐसे खंजर घोंपकर।
शिवानी सूर्यवंशी (खुशी)
इन जंजीरों को तोड़कर
रुख हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
किसी और के लिए
खुशी की राहों को छोड़कर
मुस्कुरा रहें है ऐसे हम
बिजली चमक रही हो जैसे बादलों के साए ओढ़कर
दर्द मिटता ही नहीं कितना भी मिटा ले
वो गया है मेरे सीने में ऐसे खंजर घोंपकर।
शिवानी सूर्यवंशी (खुशी)
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