...

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"मन मन्दिर"
शंखनाद जब हुआ हृदय में,
तब झूम उठा था मन मन्दिर।
मैं भी झूमा अपने प्रभु संग,
तब बन गया था तन मन्दिर।

रोली,चन्दन,टीका,अक्षत,
सभी थाल में सजते रहे।
हृदय से गाई राम आरती,
घण्टी-घड़ियाल भी बजते रहे।

कस्तूरी बन खोज रहा हूँ,
क्यों अपने प्रभु को दूजे द्वार।
ज्ञान चक्षु खोलेंगे प्रभु जी,
तभी होगा मेरा भी उद्धार।

भक्त जलाए धूप जहाँ भी,
प्रभु दर्शन देने आ जाना।
मैं बाती हूँ तुम दीपक बनकर,
मेरे जीवन में छा जाना।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
11/09/2020


© भूपेन्द्र डोंगरियाल