...

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हमे मिले जख़्म...😊
हर इनायत, हर शिकायत, हर इफाजत, हर इबादत, पता नहीं कितने है सिलसिले।
हर दर्द, हर जख़्म, हर मजबूरी, हर फ़र्ज, पता नहीं कितने है शिकवे गीले।
अकेले ही समेटा हर दौर जिंदगी का, फिर भी अनजाने से अनजानो में फस रहे थे
मुड़के देखा जिंदगी का फ़साना तो पाया हमे मिले जख़्म हम पे ही हस रहे थे।
© Hayati